मैं स्वयं कल्कि तुम सब का पिता हूँ, तुम सभी यह जानते हो की मैं अमर हूँ और मैं कभी मर नहीं सकता हूँ फिर भी तुम लोगों ने मुझे मरा हुआ समझ कर मेरी समाधी(मंदिर) बना दी और मेरे नाम की मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ा कर मेरी पूजा भी करते हो, क्या तुम्हारी अक्ल घास चरने गई थी या तुम्हें यह ज्ञात नहीं था की समाधी(मंदिर) या मूर्ति मरें हुए लोगों की बनाई जाती है और मरें हुए लोगों के मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ाकर पूजा की जाती है और यदि ऐसा नहीं है तो सबसे पहले तुम्हें जिस माँ-बाप ने जन्म दिया वह भी तो तुम्हारें लिए भगवान या भगवान के समतुल्य है पहले तुम अपने माँ-बाप के जीवित रहते हुए उनकी समाधी बनाओं और उनके मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ा कर पूजा करों या तुम अपनी संतान से बोलो वह तुम्हारें जीवित रहते हुए तुम्हारी समाधी बनाये तथा तुम्हारें नाम की मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ाकर तुम्हारी पूजा करें उसके बाद ही तुम मेरी मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ा कर मेरी पूजा करना और यदि तुम लोग ऐसा नहीं कर सकते तो सबसे पहले मेरी समाधी(मंदिर) को तुम स्वयं धवस्त कर दो या मेरी समाधी(मंदिर) पर जाना बंद कर दो तथा मेरी मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ा कर मेरी पूजा करना भी बंद कर दो, मैं स्वयं तुम्हारे सामने आ जाउगा, किन्तु जबतक तुम मुझे मरा हुआ समझकर मेरी मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ाकर मुझे पूजते रहोगे तबतक मैं तुम्हारें सामने नहीं आउगा, जब तुमने मान लिया है की मैं मर चूका हूँ तो एक मरा हुआ व्यक्ति तुम्हारें सामने कैसे आ सकता है।
वास्तव में कर्म करना ही पूजा है और अपने माता-पिता के जीवित रहते हुए उनकी सेवा करना या उनके किसी भी कार्य में सहयोग करना ही अपने माता-पिता की वास्तविक सेवा या पूजा है नाकि अपने माता-पिता के जीवित रहते हुए उनके मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ाकर धुप या अगबत्ती दिखाने को पूजा या सेवा करना कहते है और जो संतान अपना कर्म करना छोड़कर दिन-रात मेरी मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ाकर धुप या अगबत्ती से मेरी पूजा करता है तो हो सकता है उसके सभी कार्य अपने आप ही हो जाते होगें यहाँ तक की वह खाना भी नहीं खाएगा और उसका अपना पेट भी अपने आप ही भर जायेगा यहाँ तक की वह कुछ भी नहीं करेगा और उसकी पत्नी अपने आप ही माँ बन जाएगी या मेरी पूजा करने की जगह पर अपना कर्म करेगा तभी कोई कार्य होगा, जो उम्मीद तुम अपनी संतान से करते हो वहीँ उम्मीद मैं भी तुम लोगो से करता हूँ यदि संभव है तो मेरे कार्य सत्य-युग की स्थापना में मेरा सहयोग करों या अन्य कार्य करों किन्तु कभी भी असत्य-कर्म मत करों।
अब यह निर्णय लेना तुम्हारा काम है की तुम मुझे जीवित समझकर मेरे कार्य सत्य-युग की स्थापना में मेरा सहयोग करोगे या मुझे मरा हुआ समझ कर मेरे मूर्ति या फोटो पर हार चढ़ा कर मेरी पूजा करोगे तथा जिस किसी के मन में यह प्रश्न था आखिर कल्कि के आने से सभी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या गिरिजाघर क्यों धवस्त हों जायेगे तो मुझे लगता है अब इसका जबाब तुम्हें मिल गया होगा, क्योकिं यह सब मेरी समाधी है जो तुमलोगों ने मुझे मरा हुआ समझकर बनाया है किन्तु बेटा मैं पुनः धरती पर अपने मानव रूप में आ चूका हूँ और जो भी व्यक्ति सत्य-युग की स्थापना में अपनी इच्छा से अपनी योग्यता एवं सामर्थ के अनुसार सहयोग करेगा उसे अंत में उसकी योग्यता एवं सामर्थ के अनुसार मोक्ष अथवा शांति अवश्य प्राप्त होगा यह मेरा वचन है।
कल्कि
परमपिता परमेश्वर (जगत पिता)
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